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________________ (१५४) उनकी रुक्मिणी रानी है जो धर्म की बात को खूब जानती है। उसके प्रद्युम्न पुत्र हुआ जिसको धूमकेतु हर कर ले गया । (१५५) जहाँ एक बावन हाथ लम्बी शिला थी उसके नीचे वीर प्रद्युम्न को दबा दिया। पूर्व जन्म का जो तीन वैर था, धूमकेतु ने उसे निकाल लिया। (१५६) मेघकूट एक पर्वतीय प्रदेश है वहां विद्याधरों का राजा रहता है। कालसंवर राजा वहां आया और कुमार को देख कर उठा ले गया । (१५४) वहीं पर प्रथा मन अपनी उन्नति कर रहा है। इसकी किसी को खबर नहीं है । वह बारह वर्ष वहां रहेगा, फिर वह कुमार द्वारिका था जावेगा। (१५) वचनों को सुनकर नारद मन में बड़े प्रसन्न हुये और नमस्कार कर वापिस चले गये । विमान पर चढ़कर गुनि बहां आये जहां मेटकूट पर्वत पर कामदेव प्रचुम्नकुमार था । ... (१६) कुमार को देखकर ऋपि मन में प्रसन्न हुये तथा फिर शीघ्र ही धारिका चले गये। वहां जाकर रुक्मिणी से मिले और उसको पुत्र की सूचना दी। (१६०) हे रुक्मिणी । हृदय में संताप मत करो। यह प्रद्युम्न बारह वर्ष बाद पाकर मिलेगा। मुझे ऐसा ऋचन केवली ने कहा है इसलिए प्रद्य म्न निश्चय से आकर मिलेगा। प्रद्य म्न के आने के समय के लक्षण (१६१) सूखे हुये आम के पेड़ तथा संवार फिर से हरे भरे होजायेंगे ! स्वर्ण-कजरा जज से पूर्ण सुशोभित होने लगेंगे। कर एवं बावड़ी जो पूर्ण रूप से सूख गये हैं वे स्वच्छ जल से भरे दिखाई देंगे। (१६२) सब दूध याने वृक्षों में फूल आ जायेंगे । जब तुम्हारे आंचल पीले पड़ जायेंगे तथा दोनों स्तनों में दूध भरने लगेगा तब वह साहसी और धीर वीर प्रद्युम्न श्रावेगा। - (१६३) इस प्रकार जब प्रद्य म्न के आने के लक्षण बता कर नारद मुनि वहां से चले गये तब रुक्मिणी के मन को सन्तोष हुन्या । वह पक्ष, मास, दिन और वर्ष गिनने लगी श्रम कथा का क्रम प्रद्युम्न की ओर जाना है।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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