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________________ (१५२ ) (६४: वचनों को सुनकर हलधर वहां गये जहां नारायण बैठे हुये थे। इंस करके उन्होंने अत्यन्त वनय पूर्वक कहा कि तुमको सत्यभामा की सँभाल - भी करनी चाहिये। (६५) नब नारायण ने ऐसा किया कि रुक्मिणी का झूठा उगाल गांठ में बांधा कर वहां पहुंचे जहां सत्यभामा का मन्दिर (महल) था। (६६) सत्यभामा ने नेत्रों से श्रीकृष्ण को देखा और रुदन करती हुई। बोली तथा अत्यन्त ईपी से भरे हुए वचन कहे कि हे कि हे स्वामी ! मुझे क्रिस अपराध के कारण अपने छोड दिया है। (५) तय हंसकर कृष्णमुरारी बोले तथा मधुर शब्दों से उसे । समझाया | भिमा कपट निदा में सो पगे और गांड को झलाकर खाट । के नीचे लटका दी। (85) जब गठरी को मुलते हुए देखा तो सत्यभामा उठी और उसे खोला | गहरी से बहुत ही सुगंधित महक उठ रही थी। तय सुगंधित वस्तु । का देखकर उसने अपने शरीर पर लगाली। (EE) जब श्रीकृष्णा ने उसे अंग पर मलते देखा तो वे जगे और हंसकर कहने लगे यह नो रुक्मिणी का उगाल है । तुम अपने सब झंझटो । को गया समझो। मुत्यभामा का रुक्मिणी से मिलाने का प्रस्ताव (१०८) सत्यभामा सत्यभाव से बोली कि मुझ से रुक्मिणी को लापर मिलायो । तब हंसकर श्रीकृष्णा मुरारी ने कहा कि वन में उससे तुम्हारी भेंट कराऊंगा। (१०१) नारायण उठकर महल में गये और रुक्मिणी के पास बैठ गये । और कहने लगे कि वन में बहुत सी फुल वाडियां है। चलो आज यहाँ । जीमण करें। (१०२) नारायण ने रुक्मिणी का जैसा रूप बना लिया और पालकी पर चढकर बगीची में गये । जहां बावड़ी के पास अशोक वृक्ष था वहीं रुक्मिणी को उतार दिया।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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