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! १५० (3) जब दुष्ट ने दुष्टतापूर्ण वचन कहे तो श्रीकृष्ण को क्रोध आ गया और श्रीकृष्ण ने शिशुपाल को मारने के लिये हाथ में धनुष उआया ।
श्रीकृष्ण और शिशुमाल के अध्य युद्ध (4) हकाल और ललकार कर परस्पर दोनों बीर भिड़ गय और खूब बाण बरसने लगे मानों वर्षा हो रही हो । तब बलिभद्र ने इल नामक आयुध लिया और रथ को चूर्ण कर हाथी पर प्रहार किया।
(७६) शिशुपाल ने हाय में धनुप लिया और एक साथ पचास बाण छोडे । तब नारायण ने सौ बाणों से उनका संहार किया तो शिशुपाल ने छो सौ षाणों से प्रहार किया।
(८०) नारायण ने चार सौ बाणों से उम पर प्रहार किया तो उसने आठ सौ बाणों से उस पर चार किया। फिर नारायण ने सोलह सौ बाण धनुप पर रख कर चलाये तो उसने बत्तीस सौ बाणों से धावा किया जिसके कारण कोई स्थान नहीं सूझ रहा था ।
(८१) इस प्रकार दोनों शक्तिशाली वीर खई हुये एक दूसरे पर दूने दूने बाणों से आक्रमण करते रहे । युद्ध बढता ही गया बंद नहीं हुअा तथा । बार्गों से पृथ्वी आच्छादित हो गयी।
श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध (२) तव नारायण ने सोचा कि धनुष बाण का अवसर नहीं है।। तब हाथ में चक्र लेकर उसे घुमाया जिससे क्षण भर में ही शिशुपाल का | सिर कट गया।
(३) शिशुपाल को मरा हुआ जानकर भीम राज उदास हो गया। रण में भयकर मार सही नहीं जा सकी इलिये चतुरंगिरणी सेना वहाँ । से भागने लगी।
(४) तव रुक्मिणी ने सत्यभार से कहा कि रूपचन्द और भीष्मराम की रक्षा करो। मन में बैर छोड़कर इनसे संधि करो तथा कुण्डलपुर नगर को वापिस चलो।
(५) तब नारायण ने कृपा करके बंधे हुए भीष्मराव को छोड दिया । । रूपचन्द से गले मिले और फिर अपने नगर को प्रस्थान किया ।