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________________ प्रद्युम्न द्वारा रूक्मिणि को सचित करना तबइ मयण मन चमक्यउ भवउ, पवण बेगि रूपिणि पह गयउ । माता वयण सूझई तू मोहि, एक अनूपम अाफहु तोहि ।।६०२।। पूर्व सहोवरु जो मोहि तणउ, सो सनेह बहु करतउ कनउ ! अब मो देउ भया सुरसारु, रयणजडित तिण प्राण्यो हार ॥६०३।। अब वह अहारसु पहरै सोइ, तहि घर पूत आइसो होइ । माता फुडउ पयामहि मोहि, कहहु तहा का अफामु तोहि ॥६०४॥ तव रूपिरिण वोलै मुह चाहि, तू मो एकु सहस वरि पाहि । बहुत पूत मो नाही काज, तू ही एक मही भूजे राज ॥६० ५।। जामंयती के गले में हार पहिनाना फुणि वाहुडी बोल रूपिणी, जववती जु बहिण महु तणी । निसुणि पूत तोहि कही विचारु, इनो कउ जाइ दिवावइ हारु।६०६॥ ---. .-... .-. - . .- -.. ----- - (६०२) १. तांह (म) २. प्रचरिज (ग) (६०३) १. करहि हम घणड (ग) बहु करतो पणाउ (ख) २. इव तो देष भमा मुनिसारू (ग) ३. प्रापउ (ग) (६०४) १. एड्स हार जो पहहि कोड (ग) २. तिहि कइ (ग) ३. कुजून बोल उ नोहि कहाहि, तहारू हउ वयावा तोहि (ग) (६०५) १. वडि (ग) २. मोहि जाणे काज (ग) ३. मोहि (ग) ४. भूपति (६०६) १. तुझ (ग) २. उसकार (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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