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________________ ( ११६ ) गूजर तेसो भीजी भऐ, वेलावल संभरि के भले । जिजाहुति कनवजी भले, पुहमि संख सवुद मंद लह निहाउ, ठाठा भयउ भेरि तूर बाजइ असराल, महुवरि वीसा राइ सब निमते गणे ॥५७६|| निसाणा घाउ | अलावरिण ताल || ५८० || 4 विप्रति बेद चारि उचरइ, घर घर कामिणी मंगलु करइ । २ बहु कलियर नयरि उछलिउ, जब मयरद्ध विवाहरण लिउ ।। ५८१ ॥ ४ ܝ 3 रथर्णानि जडे छत्र सिर धरइ, कनक दंड चावर सिर ढलइ । मुकट लिए जागी पाद रवि करण करत || ५८२ | तब बोलइ रूक्मिणी रिसाइ, सतिभामा आणि केसइ । तीनि भवरण जउवरजइ मोहि, तउ सिर केस उतारउ तोहि ॥ ५८३ ॥ केस उतारि पाय तल मलई, फुरिंग परद्रवरण विवाह्णु चलइ । २ ३ एतेइ मिलि सयल जनु सब्बु, दुहु नारि करयउ क्षिम तब्बु ||५८४|| + (५७६) १. ले सोरठी जे भले (ख) कनफबेस सोरठ जे भले (ग) २. जोजन देश कनउजी मिले ( ग ) ( ५८१) १. चार वेद विप्र कचरहि ( ग ) २. इव (ग) ( ५८२) १. रसीह ( ख ग ) २. जडित (ग) ३. म त सिर ऊपरि घस्यो (ग) ४. उबी (ग) ५. जाउ नव रवि किरण करंतु (ख) जानु कि सर किरण छोति (ग) अउर बंदर वासी भले वलहि चउर कटि कउलिग चले यह पाठ य प्रति में अधिक है । (५८३) १. अहि कराइ (ग) प्राणीहि कराह (ग) (५८४) १. मिले जड साह सयलु जा लोग ( ग ) २. विसयल जनतु स (ख) ३. करामत खिम तब्बु (ख) होइ बिवाह यो संजोग (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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