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________________ (.१०६) मयरद्ध दल चले पलाइ, अमिगिझ लरइ सहण न जाइ। डाझहि य गय रहिबर घणे, उहटे सयन पजूनहा तणे ॥५२६॥ कोपारूढ भयो तब मयणु, ता रणहाक सहारइ कवरणु । पुहपमाल कर धनहर लीयउ, साधिउ मेघबाग पर ठयउ॥५२७॥ मेघनादु घनघोर करत, जल थल महियल नीर भरंत। . ! रसी आगि चुका था, जादम सफा बली वहि ताम ॥५२८॥ रहिवर छत्रजि दीसइ भले, नीर प्रवाह सयल वहि चले । हय गय तुरय वहइ असेस, खत्री राणे वहे असेस ॥५२॥ तव जंपइ महमहण पचारि, कोयह सुक्रम को चालि | नारायण मन परयो संदेहु, हतो यह वरिसर मेहु ॥५३० तव मनह अचंभो भयो, मारुन वाण हाथ करि लयो । जवइ वाण धाइयो भहराइ, मेघमाली घानी विहडाइ ॥५३१॥ (५२६) १. रउछाल (ख) पर्वत (ग) २. अग्निवाण रण सहरण न जाई (ग) अगनि झल सख सहन जाइ (ख) ३. वाझहि (ख) ४. हडरे (स्त्र) नोट-५२६ का तीसरा चौथा चरण सीनों प्रतियों में नहीं हैं। (५२८) १. मेघवान (स्व ग) (५२९) १. धरणे (ग) २. हुये तखिरणे (ग) ३. रम संवहितउ चन्चे (ग) | ४. खत्री बहे जे रण पागले (न) (५३०) १. हरिराउ संभालि (ग) २. की यह सुक्रम भउम की गारि (ख) कउ इह सुकु कय मंगलवालु (ग) ३, बडा (ग) ३. कहा हु तज इह वर सिउ मेहु (ख) मासु कहा ते माया मेह (५३१) १. भारची (ग) २. जहि पवन टूटा तिहिं ना (ग) ३. मेघमाला घाले वहाइ (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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