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________________ दो प्रतियों में से एक प्रति देहली के शास्त्र भएडार की है और दूसरी सिंधी ओरिन्टियल इन्स्टीट्य ट उज्जैन के संग्राहलय की है। इन चारों प्रतियों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है: (१) यह प्रति जयपुर के श्री बधीचन्दजी के दि० जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार की है। इस प्रति में ३४ पत्र हैं। पत्रों का आकार ११३ ४ ५६ इञ्च का है। इस प्रति का लेखन काल सम्बत १६०५ श्रासोज़ बुदी ३ मंगलबार है। प्रति प्राचीन एवं स्पष्ट है । इसमें पदों की संख्या ६८ है। इस संस्करण का मूलपाठ इसी प्रति से लिया गया है। लेकिन प्रकाशित संस्करण में पद्यों की संख्या ७८१ वी गई है। इसका मूल कारण यह है कि बस्तुबंध छद के साथ प्रयुक्त होने वाली प्रथम चौपई को भी लिपिकार अथवा कवि ने उसी पद्य में गिन लिया है इसी से पद्यों की संख्या कम हो गई। इस प्रति के अतिरिक्त अन्य सभी प्रतियों में बस्तुबंध के पश्चात प्रयुक्त होने वाली चौपई छंद को भिन्न छंद माना है तथा उसकी संख्या भी अलग ही लगाई गई है। प्रस्तुत पुस्तक में १७ वस्तुबंध छंदों का प्रयोग हुआ है इसलिये १७ चौपई तो वे बढ़ गई, शेष छंदों की संख्या लिल्लने में गल्ती होने के कारण बढ़ गई हैं, इसलिये इस संस्करण में ६८ के स्थान में ७.१ संख्या पाती है। कहीं कहीं चौपई छंद में ४ चरणों के स्थान पर ६ चरणों का भी प्रयोग हुअा है। (२) दूसरी प्रति ( 'क' प्रति ) यह प्रति कार्मा (भरतपुर) के खगडेलवाल जैन पंचायती मन्दिर के शास्त्र भण्डार की है जिसकी पत्र संख्या ३२ है तथा पत्रों का श्राकर १० x ४५ इन्च है । इसकी पद्य संख्या ७१६ है, लेकिन ७०० पद्य के पश्चात् लिपिकार ने ७८१ संख्या न लिख कर ५१० लिख दी है इसलिये इममें पद्यों की कुल संख्या वास्तव में ७५७ है । प्रति में लेखन काल यद्यपि नहीं दिया है, किन्तु यह प्रति भी प्राचीन जान पड़ती है और सम्भवतः १७ वीं शताब्दी या इससे भी पूर्व की लिखी हुई है। इस प्रति में २३ वें पत्र से २८ पत्र तक अर्थात् मध्य के ६ पत्र नहीं हैं। (३) तीसरी प्रति ( 'ख' प्रति ) यह प्रति देहली के सेठ के कूचे के जैन मन्दिर के भण्डार की है, जो वहां के साहित्य सेवी ला० पन्नालाल अग्रवाल को कृपा से नाइदाजी को प्राप्त हुई थी। यह प्रति एक गुटके में संग्रहीत है। गुटके में इस रचना के ७२ पत्र है । प्रनि की लिपि स्पष्ट तथा सुन्दर है। इस प्रति में पयों की संख्या
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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