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________________ पिन्विशुद्धि ० काद्वयो पैतम् १२४ ॥ लोक प्रमाणवाली इस दीपिका की रचना की। जैसा कि प्रशस्ति से स्पष्ट हैः इति विविधविलसद, सुविशुद्धाहारमहितसाधुजनम् । श्रीजिनवल्लभरचितं, प्रकरणमेतन कस्य मुदे ? ॥ १ ॥ मादृश इह प्रकरणे, महार्थपङ्कौ विवेश बालोऽपि । यद्वृच्यङ्गुलिलग्न-स्तं श्रयत गुरुं यशोदेवम् ॥ २ ॥ आसीदिह चन्द्रकुले, श्रीश्रीप्रभसूरिराममधुरीणः । तत्पदकमलमरालः, श्रीमाणिक्यप्रभाचार्यः ॥ ३॥ तच्छिष्याणुर्जडघी - रात्मविदे सुरिरुदयसिंहारूयः । पिण्डविशुद्धेर्वृत्ति-मुद्दधे दीपिकामेनाम् ॥ ४ ॥ अनया पिण्डविशुद्धे - दीपिकया साघवः करस्थितया । शस्यावलोककुशला, दोषोत्थतमांस्यपहरन्तु ॥ ५ ॥ विक्रमतो वर्षाण, पञ्चनवत्यधिकरविमितशतेषु । विद्दितेयं लौकैरिह सूत्रयुता त्र्यधिकसप्तचती ॥ ६ ॥ X X X अन्य गृहद्वृत्तियों, लघुवृत्तियों का आश्रय लेकर इस दीपिका की रचना हुई है। यह संक्षिप्त होते हुए भी वस्तुतः प्रस्तुत प्रकरण के लिये दीपिका सा ही है। संक्षिप्त रूचि तज्छों के लिये यह दीपिका अत्यन्त ही महत्त्व की है । इस की भाषा भी सरल है, संक्षित होने पर भी विषयों का प्रतिपादन इसमें बहुत ही सुन्दर ढंग से किया गया है। इस में दीपिकाकारने कथानको का आश्रय लेकर कलेवर बढाने का प्रयत्न नहीं किया है। उदाहरणों के लिये वृत्तियों का उल्लेख कर दिया है । उदय सिंहरि के सम्बन्ध में देशाइने अपने 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास ' में लिखा है : " ते उदयसिंहे महावलि (चन्द्रावती ) ना राउळ धंधलो देवनी समक्ष मन्त्रवादिने मन्त्री इराज्यो । तेणे पिण्डंविद्धि To उपोद्घात! दीपिका कार परिचय | ॥ ३४ ॥
SR No.090361
Book TitlePindvishuddhi Prakaranam
Original Sutra AuthorUdaysinhsuri
AuthorBuddhisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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