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________________ हुई । समस्या-पूर्ति में न केवल उनकी काव्य-प्रतिमा, छन्दयोजना तथा प्रबन्धपटुता का परिचय मिलता है अपितु उनकी प्रत्युत्पन्नमति एवं उक्तिसौश्व का भी ज्ञान हमें होता है। एक समय की बात है वे कहीं जा रहे थे, एक विद्वान् उनको मार्ग में मिल गया। उसने उनके पाण्डित्य की प्रसिद्धि पहिले से ही सुन रखी थी, अतः परीक्षा करने की दृष्टि से उसने निम्नलिखित समस्यापद उनके सामने रखाः " करनः किं भृङ्गो मरकतमणिः किं किमशनिः १ । " इस पत्र को सुनते ही गणिजीने इसकी पूर्ति तुरन्त ही इस प्रकार कर डाली - “ चिरं चिचोद्याने चरसि च मुखाब्जं पिबसि च, क्षणादेणाक्षीणां विरहविपमोहं हरसि च । नृप । त्वं मानाद्रिं दलयसि च किं कौतुककरं, करनः किं भृङ्गो मरकतमणिः किं किमशनिः १ ॥ १ ॥ " इसको सुनकर वह विद्वान् अत्यन्त प्रसन्न हुआ और बोला- मैंने आपके विषय में जैसा सुना था वैसा ही आपको पाया ऐसा कहकर वह उनके चरणों पर गिर पड़ा । ऐसी ही दूसरी घटना धारानगरी की है । उस समय धारा में श्रीनरवर्मा नामक नृपति राज्य कर रहे थे। एकवार . राजसभा में दो पण्डित बाहर से आये । उन्होंने पण्डितों के सामने यह समस्यापद रखा " कण्ठे कुठारः कमठे ठकारः । 29 राजसभा के सभी पण्डितोंने अपनी बुद्धि के अनुसार इस समस्या की पूर्ति की, परन्तु उन दोनों विदेशी पण्डितों का चित्त 2.3
SR No.090361
Book TitlePindvishuddhi Prakaranam
Original Sutra AuthorUdaysinhsuri
AuthorBuddhisagar
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages290
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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