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________________ १२२ पउमचरित [ ] पुणु णियउस्तरें लील डाएँ वि । एवं पदोन्छन अग्गएँ थाऍवि ॥१॥ 'विरह-वसाइयएँ सुमरन्तिएँ। सग्ग-पएस असेसु भमन्निएँ ॥२॥ गिय-पुण्णेहि गरुएहि मणिहउ । वहु-काकहाँ केम वि तुई दिट्टड ।।३।। णिविसु वि सहें विणकामि सहवा दे साइड णिम्यूड-महाहव ॥४॥ पिप-महुराला हि सम्माणहि। किं सवेण महु जोषण माणहि ॥५॥ णिपाल पाहाणुव कि अच्छहि। सबटम्मुहु स-विमारणियच्छहि ॥१॥ साइट पिसाप जेम भनि। कालु म सेवाह वत्थ-विवजित ॥७॥ वत्ता सो कोयादापड पहु सुन्दरु णन्दन्तान जेम सरचड पई किया। ओ णिय-णिग्गया था [४] हउँ सा सीय तुहुँ में सो रहुवइ । पुर में पिहिमि ते जिइम णरवह।।१ सा जि भउज्सा-णयरि पसिनी। घण-कण-जण-मणि-श्यण-समिद्धी ॥२ राउलु तं में ते जि हयगय-धर। पुष्फ-धिमाशु तं में से रहवर ॥३॥ ऍउ मई-पमुह सम्धु मलेउरु। अबहनउ मथरद्धम क पुरु ॥४॥ भुनहि काम-मोय हिम इरिथ्य । हहि छाछीहर-दुक्ख श्चिम ॥५॥ अग्णु वि पड़म होम्ति अइ-सह । चड कसाय वावीस परीसह ।।॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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