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पदमचरित
कहना, लक्ष्मणकी मृत्यु, अन्तःपुरमें विलाप, रामका भाईकी मृत्यु होनेपर विलाप, मूर्षित होना, दर-दर भटकमा, विभीषण
का उन्हें समझाना ! समका मोहमें पड़े रहना । अठासीवीं सन्धि
३००-३१८ रामका लक्ष्मणके दाह-संस्कारसे मना करमा, रावणके सम्बन्धियों द्वारा रामपर घड़ाई, राम द्वारा प्रतिकार, इन्दजोत और खरके पुत्रों द्वारा जिनदीमा ग्रहण करना, देवों द्वारा उदाहरण देकर रामको समझाना, रामको प्रात्मबोध होना, देवताओं द्वारा भात्मालय, शत्रुघ्नको राज्य सौंप कर राम द्वारा दीक्षा ग्रहण
करमा । नवासीधी सन्धि
३१८-३३५ स्वर्गमें सौतेन्द्र द्वारा अवधिज्ञानसे रामको विरनिकी खबर पा लेना, उसका आगमन, रामके दर्शन, कोटिशिलापर रामकी इस स्वयंप्रभ देव द्वारा परिक्रमा, उसके द्वारा रामको परीक्षा, रामका अडिग रहना, रामके ज्ञानको प्राप्ति । स्घयप्रभदेवका नरक में प्रवेश, लक्ष्मण और रावणके जीवोंको सम्बोधन, क्रोधकी
निन्दा, दोनों द्वारा कृतज्ञताका नापन । नन्धेवी सन्धि
३३६-३५३ दशरथके भवोंका वर्णन, लवण अंकुशको भविष्य कथन, भामण्डलके पूर्वभवका कयम, रावण और लक्ष्मण और सीतेन्द्र देवके भविष्य कथन, लवण और अंकुशको विरक्ति, दीक्षा और भुक्ति, कुम्भकर्णका दीक्षा ग्रहण करना और मोक्ष प्राप्त करना। प्रशस्ति त्रिभुवन स्वयंभू द्वारा ।