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परमचरिट मणी-ससि-सूरउ गयण-मग्गु । णं इन्द-पष्ठिन्द-विमुकुस ॥३॥ ण मुणिषरु इह-पर-लोय-चुकु। कुकइ-कब्बु लपवण-विमुक्छु ।।५॥ थिउ बलु विणिरुमम गलिय-गाउ । राहप-बलु परिवदिय-यात्रु ॥५॥ पसह स-पडा णीसह सङ्ग। एतद अफालिय तूर-लक्ख ॥५॥ एत्तहें पलें हाहाकारु ह। एसह पुणु जयजय-सा घुष्ट ॥७॥ एस बि गयणें अस्थमिड मित्त । णं हत्य-पहायाँ तण मितु ॥८॥
घता
सुमन्सई वेणि बि सेग्णइँ स्यणिएं णाई णिवारियई। भूऍहि स हैं भू अ-सहासई रण भोयणे हकारियई ।।१॥
[६२. बासटिमो संधि] पाडिएँ हाथै पहथें बलई वे वि परियत्तई । गाइँ समत्तएँ कजें मिहुणई णिसुरिय-गसइँ ॥
[.] गएँ रायणे णिय-मन्दिर पइठे। हरि-हलहरै रण-वाहिर णिषि? ॥३॥ तहि अवसर जप-पिरियण्ण-णामु । जोहारिउ णल-णीले हिं राम ॥२॥ सेण धि पहु-रयण-समुज्जलाई । दिण्ण ई जीलहों मणि-कुण्डलाई ॥३॥ इयरहों थि मउडु मणि-तम-मिण्णु। जो रामपरिहि उम्खेण विषणु ॥४॥ जंघे वि पपुजिय राहवेण । पङ्ग चूहु किड जम्बवेण ।। || पर दाहिणेण हय उत्तरण । गय पुस्खें रह अपरतणेण ।।६।। विरइयई विमाणइँ गयण मगा। थिम हरि-हलहर सीहासणगें ।।।। देव मि अच्छेड अभेउ पूछ । णं घिउ मिलेवि पञ्चमुहु जूहु ।।६।।