SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ अपक्कं वा छिग्णु चिन्धु । विहलहल महिले पनि हत्थु । के रिउ वयले विन्दुषु ॥१॥ दवयहाँ जेवगड ह ॥ ६ ॥ एस त्रिवे त्रिरण-भर-समत्य | ओवडिय मिडिय गील-प्पर || ७ || किस-रोस गिचित्र वेणि वि गङ्गाखिया ||८|| पच्चारित पीलु पह जय-लदेउ आलिङ्गशु एत्थन्तरे णी ण किउ खेड | यामेति प सो एन्तु पत्यें कुद्रण । यूँ छ सरवरे मरि छत्ता 'पहरु पहरू एकहों जगहों । जिम रामही जिम राम ॥२॥ 7 जं विणिय हस्थ-पहरथ वे वि । र्ण मत्त महाराज गय-विाणु । [१३] । पाठ विसजिउ चण्ड- वेउ ॥११॥ महाविगुणु मेम्व ॥ २ ॥ करियर- सन्दर्भेण करि पुन ||३|| णं महिलु आगमें मुनिवरेहिं ॥४॥ एक्केकहाँ वे वे वाण दुक ||५|| विहिंसारहि विहिं षय थरहरन्त || ६ || धड एक्के एक डिग्रड भिष्णु ॥७॥ चवीस वर गोळेग मुख । विधि करि कप्परिंग समोत्थरन्व । रह एक एक कवउ छिष्णु । विहिं वाहु दण्ड विहिं विलुभ पाम । एवं तहाँ मस्यावस्थ जाय || धत्ता सिर-कम-करोरु छक्खण्डइँ जाउ सिलीमुह कप्परिट | जिद्द हड पबन्त णं भूअहँ वलि विकिखरि ||१|| [१४] थि राय मुर्दे कर-कमल देव ||१|| णं वासरे तेय - विहीणु भाणु ॥२॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy