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पउमचरित
पत्ता वेण्णि वि करन्ति रणे णिक पहु-लम्माण-दाग-रिणहाँ। नियहर पहरे विमानता कि ये गानु नाणहाँ ।।९।।
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एश्यन्तरे आयामिय-णलेण। पय-मारकन्त-रसायलेण ॥९॥ हय-सूर-पउर-किय कलयलेण। ओरसिय-सङ्ख-दष्टिकाहलेण ॥२॥ हरिणिन्द-रुन्द-कडि-कटियलेण । सुन्दर रखोलिर-मेहलेण ।।३।। दिव-कडिण-चियर-बच्छरथलेण । पारोह-सोह-सम-भुभवलेण ।।।। छण-नम्द-रुन्द मुह-मण्डलेण। घोलम्स-कण्ण मणिकुपडलेण ।।५|| तोगारही रावण-किङ्करेण । कविउ मड-मिउडि-मयतरेण ॥६॥ विउसवण-लरु रणें दुषिणवारु। गुण-पन्धिय-भेत्तर सय-पयारु ।।७।। आमेलिजन्तु सहास-भेउ । थोवन्तरें णघर अलङ्क छेउ ॥६॥
धत्ता जलें पलें पाग्राले हाणें वाण-णिवहु सन्दरिसियर । स्वि-जलहरु सर-धाराहरु पल-कुलपम्वएँ वरिसिया ॥५॥
[१२] तं हत्थहाँ केरउ वाण-जालु । पुरम्मु असेसु दियन्तरालु ॥१॥ आयामै वि गलेण दुरिसणेण । आकरिसिड सरणाकरिमण ॥२॥ धारा-तिमिर व किरणायरेण । मीणार्थं जगु व सनिच्छत्रेण ॥३॥ दहिमुद्द-पुरै रिसिकागोवलग्गें। हणुवेण व सायर-जलु ख-मर्गे ॥४॥