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रिंउ हरिण जू हु हिष्टन्त णापि कहिँ आइएमइ
पउमचरिउ
पुरन्त
मम्मीस देखि |
णं पल समुट्टिय चन्द्र-सूर | णं पलय हुआषण पचण-चण्ड | णं सीह समु सिय सरीर । दुव्वार- वइरि सञ्चारहि । अग्गे वारण-वायवेहिं ।
पवर गइन्दु गद्दन्दहीँ सुहस्थों णीलु पहत्य
घन्ता
पु
राह-सों मैं पडिउ ॥१॥
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विश्वकका हत्थ पहत्य वे वि ||१||
णं राहु-कंड अच्चन्त क्रूर ॥ - ॥ णं मत्त महग्गय गिलगण्ड ॥१३॥ णं खय- जलणिहि गम्भीर धीर ॥ ४ ॥ उत्थरियाएँ हिँ पहर हिँ सिल पाहण पञ्चाय-पायदेहि ॥ ६ ॥ महारुण बन्ध राम- सेग्यु ||७| तहि अवसर थिय णल-णील वे वि ॥ ५ ॥ चत्ता
हिँडिन्ति तर्हि मर्णे विण्णु। विफद णासह पाण देवि ।
सी स्त्री समावति । सरह सपहरणु अभिडिउ ||९||
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- हत्थ के वि र ओडिया । वेष्णि व अभन्न मायङ्गधया ।
पण त्रि मढी-मञ्जुर-वयणा । वेण्णव पण्ड-कोट-धरा ।
चैणि त्रि गय सन्दगेहिं चडिया ॥१॥ वेण्णि वि सुपसिद्ध - विजया ॥२॥ वेण्गि कि गुञ्जाहल-सम-णया ।।६।। वेण वि अणवस्य विमुक्कन्परा ||४|| श्रेणि चि सवाशेच्छिष्ण धया ॥ ५॥ वेण वि सयवार-य-बिरहा ||६|| for विधि अणिच-हवरेहिं । वेण्णि वि पोमाइय सुखरेहिं ॥ ७ ॥ वेण विपीन्द्रण पृणु वि किया। देष्णि त्रिविमाण वा
विभ्रणु विष्णाणन्त गया । बेणि विसमरण दुब्बिसहा ।
हिंथिया ॥ ८ ॥
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