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पडमचारे को कि वहरि करें धरै वि पदाइ । पहरे पहरें परिभोसु पवइ ॥५॥ को वि सराहउ पडइ विमागहों। पावइ घिजु-पुङ णिय-थापाही ॥३॥ को वि घरिसइ वा हि पन्त। णं गुरूहि गह पर पडन्तर ||७|| को वि दम्मि-धम्तै हिँ आलग्गइ । करण देषि की वि उपरि क्लगह ।।८||
घत्ता
गउ मा वि कुम्भु वियारेवि जा ताई कुन्दुजल । गुणवन्तहँ पाहुडु कन्तहें को चि लेइ मुताहल॥९॥
[३]
हेमजल-दण्ड-वलगाई। कण वि तोडियई धयग्गाई ॥१॥ ण समिच्छिउ जेण पियाँ तणउ । से रहिरे कइट पसाहणउ ॥२॥ मुहपत्ति ण इरिछय जेण घरै किय सेण सुहह मोंषि समरें ॥३॥ सिरु बेण पा इरिछाउ दप्पणउ। रहे सेण णिहालिङ अप्पणउ || मुह परणाई जेण ण लावियई। तेहगड-सयाइँ गश्चाधियई ॥५॥ चिक जेण ण सुरड समाणियद। तें रण-बहुआएँ सहुँ माणियउ ॥६॥ गिय-णारि ण इच्छिय भासि जैण। आलिङ्गिय गय-धन बहुम तेग ॥७॥ सो गहई न देन्तउ णिय-फ्यिाएँ। सो फाथिउ लमरण-लियाएँ ।1८1}