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पवमचरि
[६१. एकसडिमो संधि ]
जस-लुवहूँ श्रमरिस-कुछइँ हय-तुरई किय-स्लकल हूँ । ताम्य शस्व-रामण-बल हूँ ॥
अम्मिएँ रहस- बिसह
अमिद्दइँ रामण-राम-चलहूँ ॥ १॥
देहि कारण अतुल वलहूँ । शुभ-खएँ महियल-गयणयकहूँ। सविभागहुँ विजुल त्रेय - लहूँ || ॥ पडु-पव-भेरि गम्भीर-सरहूँ । अवशेष्यरु अहिणव-रोम भाई ॥३॥ सिल पाहण-तरु-गिरि गहिय रहूँ । सम्बल-दुलि - हल करवाल धरइँ ॥ ४. उग्गामिश्र मामिय-भीम-गयहूँ । ओरालि गरु गजान्त-गयहूँ ॥५॥ पपिलिय-रह-हिंसन्त- हुयहँ । धुअ-वल-त्त धूम्रन्स-धॐ ॥ ६ ॥ साहीण पाण-परिचत्त भय हूँ । पम्मुक्क-चाय-सङ्घाय-यई ॥ ७ ॥ समुक मेक-सज्छुद्र पयहुँ । सयवार-वार- उग्घुटु-जयइँ ॥ ८ ॥
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तर्हि यूँ समरणें दारुणें । को वि वीरु णासङ्कड़ रागहुँ । को वि वीरु पपिहरड़ पर चलें। को वि वीरु असन्तु रण ।
घत्ता
सस्यावई कजियाब णं घडिया विणि वि मिडियाहूँ
सर-लन्धन्त-मुअन्ता हूँ । पयइँ सुषन्त - तिङन्ताहुँ ॥ ९ ॥
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कुङ्कुम-केसुअ- अरविन्दारुणें ॥ १ ॥ पुणु पुणु भनु सम्मोह वाणहुँ ॥ २ ॥ पुरउ धार पर मुंह न पच्छलें ॥ ३ ॥ सम्पदे पर शरवर-सन्दर्णे ॥४॥