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पडमचरित
[1] तं वयणु सुर्णेवि वहु-मच्छराएँ। अण्णाप णिमच्छिय अरछराए।।।। 'जहि रण-धुर-धोरिज कुम्भयण्णु । सहुँ भीमें भीमणिणाउ अण्णु ५२॥ जहि मउ मारीचि सुमालि मालि । जहि सोयवाहणु जम्बुमालि ॥३॥ अहि अकिसि महुँ मेहपाउ। महिं मयरु महायरु मामकाउ || जहिं हत्थु पहरथु महत्थु चीरु। ति मुग्धुरु धुरशुराम धीर !! जहिं सम्भु सयम्भु पिसुम्भु सुम्भु । मुन्दु णिमुन्दु गिकुम्भु कुम्भु॥३॥ अहि सीहणियम्बु पलम्बवाहु । जहि विडिभु डम्बरु नकगाहु ॥७॥ जहि जमु जमघण्टु जमघु सीहु। जहिं मलवन्तु जाँ विजीहु ॥८॥
पत्ता
हि सुड सारण वजोअरु हालाहलु । तहिं रावण-वलें कषणु गहणु राहव-चलु' ।। ९॥
[१२] दणिसुर्णेवि विप्फुरियाणणाएँ। अपोकर वुसु वरङ्गणाएं ॥१॥ 'अहि राहत विग्सुग्गीव-महणु। सहि गवउ गवखु विवक्त-बहणु ॥२॥ जहि लक्षणु खर-दूसण-विणासु । जहिं मामण्डलु जयसिरि णिवासु ।।३।। अहि अगाड मा सुसेणु तारु ।। जहिं णीलु णहुसु पलु दुपिणकार धा जहि अहिमुहु दहिमुहु मइसमुः। मईकन्तु विराहिउ कुमुड कुन्दु ।।५।। जहि जम्बज जम्वव-यणकेसि । जहि कोमुइ-चन्दणु-धन्दरासि ॥६॥ अहिं मारह णम्दणबण-श्यन्तु। जहि रम्भु महिन्दु विहोस-वन्तु ॥५॥ जहि सुहहु विहीसणु सूक-हत्थु । संणावह सह सुग्गीउ अत्थु ।।८।।
पत्ता
तं वलु हले सहि रावणु पा.वि
एत्तिउ एउ करेला । स स ई मुझसइ' ॥९॥