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पदमचरित
का वि कन्न ण गणेह गियारिख । सुरथारम्भु कोइ णिसरिड ||७|| का वि कन्न सिरे बन्धन फुल्लई। बाथइ परिहाइ अमुलई |८|| का वि कन्त आहरण ,ई। का बिफन्त पर-मुहु जे पलोय।।९।।
प्रत्तमाया म छन्दो )
घत्ता कहें वि अरोमा जे ण माइ पिय-रणबया सहुँ हुन्छाउ । 'जह तुई तहें अराइड वह तो मड़ पह-त्रय देवि पयहि ॥1॥
[४] पभगइ की वि वीर 'जय पचहि एवं भजे ।
तो वरि ता] देमि जा जुनु सामि-कन्ज' ।।३।। ( हेलादुबई ) को भिगइ 'मय-गण्ड वारमा। आगपि मुत्ताहता पयगई ॥२॥ को वि मग ' विमि पसाहणु । जाम ण मजिमि हव-साहणु ।।३।। को वि मणइ 'मुह-पशि ण इच्छमि । जाम " सुर-शाडक्क पहिच्छमि ॥३॥ को विभाइ ण गिहालांम दुप्पणु । जाम्ब ण रण विणिवाइउ लक्रवणु।।५।। का वि भाइ 'गउणयाइँ अवमि । जाम्न " सुरब-जण-मगु रश्रमि'।।६।। को विमण 'मुहं पाणु ण लायमि । जाम्न ण रुण्ड-शिवणयामि'||७|| की वि भणइ पाउ सुरउ समामि । जाम्ब ण भइहुँ कुल्ह खड आगमि |८|| को वि भगइ धणे फुल पारधाम । जाम्ब ण सरवर-धारगि सन्धमि'||९|
(स्या णाम छम्दो)
धत्ता की वि मणइ धणे गड आजिमि जाम्ब ण दन्ति-दन्नँ भालग्गमि' । को किरह णिनिति आहरणहों जाम्ब ण दिपण सीप दृह वयणहाँ ॥१॥