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________________ परमचरिड [२] के वि जय-जस-लुद्ध सम्णन्द्र बन्दु-कोहा । के वि सुमित्त-पुस-सुकलत-बस-मोहा ।।१॥ (हेलादुबई ) के विणीसरन्ति वीर । भूधर व तुज धीर ॥२॥ सायर ग्च व दगण । केसरि उच उन्-कंस । चत्त-सब-सीवियास । के वि सामि-भति-पन्त । मच्छरम्गि-पज्जलन्त ||५|| के वि आहवे अमङ्ग । कम-प्पसाहिबग ॥६॥ के वि सूर साहिमाणि । मत्ति-मूल- घास-पाणि ॥७॥ के वि गीत-वारुणस्थ । तीण-वाण-घाव-हस्थ ||८|| कुद्ध सुद्ध-लुख के वि । णिग्गया मु-सपणहति ॥५॥ ( तोमरो णाम छन्दो) पत्ता को वि पधाइड हाणु-हणु-सएँ परिहा कवउ को वि आणन्द । रण-रसियहाँ रोमनुभिण्णहाँ ठर सम्णाहु ण माइउ अण्णहाँ ।।१०॥ पमण का वि कन्त 'करि-कुम्भ लेतराई। भुप्ताहलई लेवि महु देज्ज तेत्तदाई ।।१॥ (हेलावुषई ) का वि कन्त चिन्धई अप्पाहड् । का वि कन्त णिय-कन्तु पसाहह ॥२॥ का वि कन्त मुह-पति करावह । का वि कन्त दपणु दरिसावा ॥३॥ का वि कन्त पिय-णयणई अनह । का वि कन्त रण-तिलज पवइ ॥! का वि कन्त स-वियारड जम्पइ । का वि कन्त तम्बोलु समप्पा ॥५॥ का घि कन्त विम्वाहर छग्गइ | का विन्त आलिगणु मगइ ॥६॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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