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________________ I वसन्तरिम संधि आठवाँ मुख राहुके समान अत्यन्त विकराल था । नौवाँ मुख धूमकेतुकी तरह धुएँसे भरा हुआ था। रावणका दसवाँ मुख सबके लिए भय और दुःख देनेवाला था। उसके बहुत-से रूप थे, बहुत-से सिर थे, बहुत-से मुख थे, बहुत प्रकार के गाल थे, बहुत प्रकार के नेत्र थे, बहुत-से कण्ठ, कर और पैर थे। वह ऐसा लग रहा था मानो भावमें डूबा हुआ नट हो ॥ १-१० ॥ ३२० [९] निशाचरेन्द्र रावणके सिर, आँख, मुख, अलकार और अस्त्र देखकर रामने निशाचरोंमें भयंकर विभीषण से पूछा, "क्या ये त्रिकूट पर्वत पर नये मेघ हैं ?" विभीषणने उत्तर दिया, "नहीं-नहीं देष, यह तो रथ पर बैठा हुआ रावण है।" रामने पूछा - "क्या ये आकाशमें पहाड़को चोटियाँ दिखाई दे रही हैं ?" विभीषणने उत्तर दिया, "नहीं-नहीं देव, ये तो रात्रणके दस सिर हैं ?" रामने पूछा, "क्या यह प्रभातकालीन सूर्यमण्डल है।" विभीषणने उत्तर दिया, "नहीं नहीं ये तो मणिकुण्डल हैं ।" रामने पूछा, "क्या ये मानसरोवरके कुवलयदल ।" विभीषणने उत्तर दिया, "नहीं-नहीं, ये दशाननकी आँखें हैं।" रामने पूछा, "क्या ये भयानक गिरि-गुफाएँ हैं ?" विभीषणने उत्तर दिया, "नहीं-नहीं, ये तो रावणके मुख हैं ?" रामने पूछा, "क्या यह धनुषों में श्रेष्ठ इन्द्रधनुष है" । विभीषणने उत्तर दिया, "नहीं-नहीं, ये कण्ठाभरण हैं"। रामने पूछा, "क्या ये शरीरसे उज्ज्वल तारे हैं ?” विभीषणले उत्तर दिया, "नहीं-नहीं, ये सफेद मोती हैं ।" रामने पूछा, "विभीषण क्या यह नीला आकाशतल है ?" उसने उत्तर दिया, "नहीं-नहीं, यह रावणका वक्षःस्थल है ।" रामने पूछा, “क्या यह दिग्गज की सूड़ोंका समूह है, " विभीषणने उत्तर दिया, "नहीं-नहीं यह, २२
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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