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________________ २०२ दिण्णहूँ रुप्पिम - कण थारू हूँ । विध्यारित परिषलु पहु फेरउ । सरवरो य लयवत - विसहज | हि सिपि सङ्घ-सन्दोहज विज्जइ अभिग्राहारु गाव सरहु बिसालु म हरण कसण-सरी थियाएँ पउमचरि धूमवधि परिपिऐवि पहाण मरुण पसाहिब अप्पर । पुणु तम्बोल दिष्णु चडरवर । पुणु दिगम्बर अमोल । बे-विषय- मिडुण व सुअन्धइँ सुदङ्गण चित्ताएँ व सदअहूँ । दोहई दुज्जण दुष्वयणाएँ व । बिरहियाँ व बहुकामावरथई । । विषभूसी । पसरहियो गइन्दभ । सुपुरिस-चिस व विसाल हूँ ॥५॥ अरता व कम्ति-जणेर ॥६॥ पण पइसारु च वधु-वर ॥ ७ ॥ वर-व-पशु व कशी सोड ११८ ॥ बहु-खण्ड-पयारु सुहावेणउ । पण महारस - दावणउ ॥९॥ [] मुवि श्रवण वा थिउ राज४ ॥१॥ मधु रूपन्तु णाएँ घिउ छप्पड ॥२॥ -वेक्षण णाएँ बहु-रक्कउ ॥३॥ जिण चयणाएँ व अम्मरुडुलइँ ॥ ४ ॥ अहोरसाइँ व घडिया-बन्ध ॥५॥ टुकुर-दागाइँ व ॥ ६ ॥ पिष्ट गाइ- पुठिणाइँ च ॥७॥ वन्दिण-जण चन्दहुँ व जियावहूँ ॥ ८ ॥ घसा विष्फुरिय-समुजक-मणि- गणहूँ । बहुल-पक्खें तारायण ॥९॥ [ ७ ] सुरिन्द- दन्ति दूसणो ॥१॥ शिवारिपाटि - जिन्दभो ॥२॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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