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________________ २५५ पउमचरिउ [ ७३. तिसतरिम संधि ] तिहुवण-दामर बीह मङ्गल-तूर-रवेण [1] पइमिव मिच अवयजिय । यि पिय-लियों तुरिय विसजिय ॥ 5 ॥ कषय- सेवहिं सहित दहम्मुडु | ओसारियाँ असेसाहरणइँ । गढ़ मजरा सरह सम् ॥२ दुरि दियरेण णं किरणएँ ॥ ३७ लय पोसिरिसण दया हव । गुल्झावरणसी माया इव ॥ ४ ॥ पल्लव-गहिय महा वणरा व ॥ ५ ॥ विविधामणेर्हि अकमक्रिज ॥६॥ -संवाद संचाहि ॥ ७ ॥ सम्बजित पासेउ बलग्ग ॥८॥ सण्ड सुत्त वाचरण कड़ा इव । वर वारङ्गणेहिं सम्वति । राउ आयाम भूमि रहसा हिउ । ताव विमटि जान पहचाउ । मयरद्वय सर-सहि णयणु । ममाणड पसइ दहवयणु ॥ छुद्ध उग्गहूँ सरी णं तुट्टेण समेण पुणु धारकति उच्चट्टिउ । राज चामियर दोणि परमेसर । घन्ता पासेस-पुडिङ्गहूँ निम्मछहूँ । कवि दिष्णइँ मुसाहहूँ ॥ ९॥ [२] पणं करि करिणि करेहिं विष्टि ॥ ३ णं कणियारि-कुसुम-थति महुअर ॥ २
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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