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पउमचरित
धत्ता जालें थलें पायालहि विसम-खयाल ह तुहूँ जर-पायवु-जहि जे जहि । लग्गेसह विसङ प्रत्ति पक्त्तिर लक्षण-हुअवहु तहिं जें सहि" '॥९॥
[५] पुत्थन्तर रण-मर-भोसणेण । सन्देसर दिगु घिहीसणेण ॥१॥ 'मणु “रावण आईं कियईं छलाई । दरिसावमि ताई महाफलाई ॥२॥ में हत्थे कदिडत चन्दहासु । जे हत्थे चारिहि किउ विणासु ॥३॥ जे हाय पणहुँ दिष्णु दाणु । जे हरर्थे भणयहाँ मजिउ माशु ॥४॥ जे हत्थे साहुकारु दु । जे हत्थं सुरवइ समरे बबु ॥५॥ ज हत्य सइँ समल हु। जे हत्थे वरुणही क्रियउ भा ॥६॥ जे हत्थें फदिदय राम-परिणि । पजाणण वणे जम हरिणि ॥७॥ तहाँ हत्यहाँ आइज पलय कालु । मइँ उप्पाडेबउ जिह मुणालु" ||८||
धत्ता भगणु वि सविसेसउ कहि सन्दसउ "प पीवि जम-सामणहौँ । राहव-संसगी पुरि आवगी होसर पर विहीसाणहाँ" ' ||
एत्थन्तर दिण्णु स-मच्छरेण । सन्दसर किन्धंसरण ।।१।। 'भणु "गवण कलकवणु चौजु । सुम्गाउ करेसइ समर मोज ।।२।। दुप्पेकप-तिक्ख-णाराय-भतु । कपिप्पथ-बुरुप्प-अग्गिमउ देन्तु ॥३॥ मुच्छक-क-बाप्पदयाभार । सर-मसर-मत्ति-सालणय-सार ॥४॥ सीरिय-तोमर-तिम्मण-णिहाउ । मामार-मुसण्डि-गय-पत्त-साउ ॥५॥