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का विनियम्विणि
केस - विसम्धुल
उठिमय करयल दद्दयहाँ अग्गएँ
'आहाँ दुम-दाणव- दुष्प-लण | जम-महिंस-सिङ्ग - णिवली - हिट्ट ।
पउमचरिउ
[१०]
परमेसर कि ओहह-धामु । किं अपने साहि चन्द्रहासु । किं अणें वसिति उब-सोण्ड । किं अणें मग्गु कियन्त-राउ | किं अण्णें गिरि कइलासु वेव । किं अण्णें विजिउ सहस किरणु
किं वहाँ जि भुव इतुहुँ दहषमणु
सो वि झाणों अलु णिरिव जोग व सिद्धिहें
सिंह लग्गय-मशु
सिविल - णिण |
परालय - कोयण || १ ॥
सुह-विच्छाय |
रुमइ वराइय ||२॥
सुर-मउष्ठ- सिहामणि- किहिय-चलण | ३| सुरकरि-विसाण सूरण पहट्ट ||४|| 操 राम कहीं षिणामु ॥ ५॥ किं योंकि त्रिणासु ॥ ६ ॥ वण-इन्थि जिगस पप ||७|| किं अण्णह बसें सुग्गोड जाउ |||| हेलए जें तुलिउ हिन्दुवड जे ||९|| फेडिल मलकुन्चर-स-फुरणु ॥१०॥
घसा
वरुण राहिब-धरण-लभस्था । तो किं रह रह अवस्थ' ।।११।।
[१]
टालिज राणड | मेरु-समाज || १||
राव भों। भिंड पठु विजजहाँ ॥ २॥