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किं रवि रिक्ख ससि निष्प बहु-विसुण
डिड्डु स- मोलिउ
णाईं स-तार बहु-मणि-कुट्टिमु
नाइँ विस
दुक्ख-पइट वहि णाएँ विरुद्ध-प्रण
पउमचरिउ
चिन्ताविय 'केस किरन्द-ड-मगेण वन्ति । फिर फलिह-प्रहेण समुच्चलन्ति । मरगय-विदुम-मेणि णिएबि । पेक्यवि आलेक्खिम-सप्प सयहूँ । पहें लगा नीलमणि-सार-भूएँ । पुणु राय सन्ति मणि हेण ।
सूरकन्सि-कुष्टिम-पण ।
सहचरिउ घर विश्वमवाहरु
घन्ता
पण त्रि जे जियन्ति बावारें । अवसे जम्ति सण-वस्थारें ॥११॥
[२]
रावण - पङ्गणु ।
सस्य - शहङ्गणु ॥ १ ॥
वहु- रयणुज्जलु |
स्वायर-जल ॥ २ ॥
पण दया करें ॥ ४ ॥ कद्दम भइयऍ पईसरन्ति ||४|| आयासासङ्कऍ पुणु वलन्ति ||५|| पर दैन्ति ण 'किरणावलि' मणेवि ॥ ५ ॥ 'मज्जेस हुँ' मनेंबिण दिम्ति पराई ॥ ७ ॥ चिन्तविट 'पडेस अन्धकूएँ || ८ || ऑसरिय विलेस किं दद्देण ॥९॥ सङ्क्रिय 'दशेस हुभवद्देण ' ॥ १०॥
चत्ता
लसिकरणुवङ्ग-तारा । जम-सणि- राहु-केट अङ्गारा ॥ ११ ॥
[ 1 ]
सुइ-वय- वन्धुरु | मोतिय-दन्तुरु ॥। १॥