________________
२७
पउमरित
घत्ता एम मणेवि स-बिलकल हि बुधई जहि 'हरि अवाहु एक खमहि । अग्ण वार जा आवहुँ मुहु दरिसाबहुँ तो सई भु ऍहि सच दमहि' ।।५।।
पुण वि पडीय हिं सकहिं गमणु किट
७२. दुसचरिमो संधि
जिणु जयकारे वि विक्रम सारे हि । अजय-पमुई [हिं] कुमारहिं ।।
[१] बेहाइन्छे हिं
उपय-सग्गेदि। पवर-विमाणे हिं
धवल भयगंहि ॥१॥ पदम-विसन्त हिं
कपिपहालिय । प्राई विलासिणि कुसुमोमालिय ॥२॥ (सम्मेटिया) जा ण वि लचिजह रवि-सह। दहवस-तुरङ्गम-मय-गएहि ॥३॥ महिं मस महागय-मलहरीहि । गजे वड छवि जलहरेहि ॥४॥ जहि पहरे पहरें भोसरह दूरु। बहु-सूरहुँ उचरि ण जाह सूरु ।।५।। पाहि रामरणण-पन्देहि धन्दु पारिश किसह तेय-मन्दु ॥६॥ जहि उण्हु ण णावह बहिणोण। बहु-पुण्डरीय-किय-मरवेण ॥७॥ जाहि पाउसु करिकर-सीपरहि। उट्ठन्ति नाड दाणोनाहि ॥८॥ मणि-मणि तुरय-खुरेहि पंसु। बोलह रविकन्त-पहाएँ हंसु ॥९॥ मोसिम-सण णक्खन-वन्दु । बहु-चन्दन्ति कन्सीऍ चन्दु ॥१०॥