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________________ २५६ परमचरित भग्धेण अमरावाहणेण । जय-मङ्गल-कलसुक्खिप्पणेण । णाणाविहेण अवधारणेण ।।७।। जलधारोवरि-परिधिप्पणेण ॥६॥ घत्ता भइरावय-मय-रिवें भसलाइ किङ्कर-पवर-पराणिऍण । अहिसिबिउ सुर-सारड सन्ति-मडारउ पुषण-पविर्ते पाणिाएँण || [-] करि-मयर-फरम्गप्फालिएण। भिङ्गार-फार-संचालिएण || महुअरि-उवगीय-वमालिपुण। अलि बलय-मुहल-सब-लालिएण ॥२॥ मह पर-दुक्खेण व सोयलेण। सजण-वयणेण व उजलेण ॥३॥ मलय-रुह-वणेण व सुरहिएण। सह-चिसण व मल-विरहिएण ||४|| अहिसिघिउ तेणामक-जलेण। पुणु णत्र-घरण महु-पिङ्गलेण ॥५॥ पुणु सङ्ख-कुन्द-जस-पण्डुरेण। मझा-तरह-उडमॉरेण ॥६॥ हिमगिरि-सिंहारेण व साडिएण। ससहर-विम्वेण व पाखिएण ॥७॥ मोत्तिय-हारेण व नुट्टएण। सरयम-उरेण व फुहएण ॥४॥ खीरेण तेण सु-मणोहरेण । पुणु सिसिर-पवाहें मन्थरंग ॥ ॥ अविणय-पुरिसेण व भदएप। गव दुमय व साहा-वचएण ॥१०॥ पुश परिमुवतण-धोवणेण । चुण्णेग अकेण गधोवएण ॥3114 धत्ता कपूरायस् बालिउ घुसिणुम्मीसित तं गन्ध-अलु स-णेउरहों। दिग्णु विवि राएं गं गणुराएं द्विपउ सम्बु अन्तेउरहों ॥१३॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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