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________________ २३४ करेंवि पयतु तन्तु क्व । ॐ उच्चरियड किं पि सात्र समप्पटि सो पउमचरिउ मण्डलज्जु एउ लक्खेव्व ॥ ९ ॥ || घसा || सं सेण्णु जाव णावहद्द | ऍडु [8] ॥ दुबई ॥ तं परमत्थ-ययणु णिसुणेपिणु दरवयणेण चिन्तियं । जद्द उच्चेट रामु पहूँ माँ सीयाएबि टुड्' ||१०|| 'परि मेहलि - इष्ण गड पुजिउ मन्तिहिं तण मन्तियं ॥१॥ अवरोप्पर आयणय - कलयले ॥२॥ कर सन्धि अवसर । उलिम-पुरिसहों मरणु जें सुन्दरु ||२|| चन्द्रमहिंहें वार-परावें ||४|| किङ्कर-अक्ष- स्वर -कम ||५|| अह्नएँ दुऍ उहय वट-सङ्गमे ॥६॥ इन्दद्द - भाणुकण्ण बन्दिग्गहूँ ||७|| तं किं एवहि थाइ गिरारि || || माणिणि एह सन्धि पडिवजमि ||९|| पचास परिट्टिएँ पर-वलें । har सम्बु- कुमार हि खर आहवें । भासाली - विणा वण-मद्द | मन्दिर-म विहीण-शिखामें । हाथ-पहत्य-पील- -ण- विमा | तहिँ जि का जंण किड निवारित तो तुहारी ण मञ्जमि । ६ घन्ता निहि श्याइँ र पुष्पिणु 1 त्रिणि वि वाहिरहूँ करेष्पिणु' ॥ १०॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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