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करेंवि पयतु तन्तु क्व ।
ॐ उच्चरियड किं पि
सात्र समप्पटि सो
पउमचरिउ
मण्डलज्जु एउ लक्खेव्व ॥ ९ ॥
|| घसा ||
सं सेण्णु जाव णावहद्द |
ऍडु
[8]
॥ दुबई ॥ तं परमत्थ-ययणु णिसुणेपिणु दरवयणेण चिन्तियं ।
जद्द उच्चेट रामु पहूँ माँ सीयाएबि
टुड्' ||१०||
'परि मेहलि - इष्ण गड पुजिउ मन्तिहिं तण मन्तियं ॥१॥ अवरोप्पर आयणय - कलयले ॥२॥
कर सन्धि अवसर । उलिम-पुरिसहों मरणु जें सुन्दरु ||२|| चन्द्रमहिंहें वार-परावें ||४|| किङ्कर-अक्ष- स्वर -कम ||५|| अह्नएँ दुऍ उहय वट-सङ्गमे ॥६॥ इन्दद्द - भाणुकण्ण बन्दिग्गहूँ ||७|| तं किं एवहि थाइ गिरारि || || माणिणि एह सन्धि पडिवजमि ||९||
पचास परिट्टिएँ पर-वलें ।
har सम्बु- कुमार हि खर आहवें । भासाली - विणा वण-मद्द | मन्दिर-म विहीण-शिखामें । हाथ-पहत्य-पील- -ण- विमा | तहिँ जि का जंण किड निवारित तो तुहारी ण मञ्जमि । ६
घन्ता
निहि श्याइँ र पुष्पिणु 1
त्रिणि वि वाहिरहूँ करेष्पिणु' ॥ १०॥