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________________ १६ पउभचार तेण चि पुत्तु 'महारा राहव । सुहउ-सीह शिष्चूढ-महाहव ॥ ७॥ जिह अरहन्स-णाहु पर-लोयहाँ। तिह तह सामिसालु इह-लोयही ' ॥५॥ एच जाम्ब पचवन्ति परोप्यरु । ताम विदेह हे णपण-मुहका ॥६॥ अक्योइणि सहामु मामण्डलु । पाइँ मुहि समाण वा]म्यण्डलु ॥७॥ आउ प्याहमा गाणा-जाणेहि। मणि-मोतिय-बाल अपमाणे हि ॥८॥ पत्ता मणे परितुहं राहवेण गरवइ-विन्दु सग्रलु ओसार वि । अवण्डिउ पुष्फवइ-मुर साहसु म ई भु अ-जुअल परमार वि ॥९॥ [ ५८ अट्ठवण्णासमो संधि ] मामण्डलें भीसणे मिलिग विहीमणे कुणय-कुबुद्धि-विजयउ । वस्थाणे दसासहाँ लच्छि-णिवासह) अङ्गः दुट त्रिसब्जियउ ।। घलए पमणिउ जम्बवन्तु । 'एप्तिहुँ म को वुदिषन्तु ||१|| किं गवउ गवस्तु सुमेणु नारु । किं अक्षणेउ रणें दुण्णिवारु ॥२॥ किं णलु किं पाल किमिन्दु कुन्दु 1 किं अउ कि पिहुमह महिन्दु ॥३॥ किं कुमुउ विहिउ त्यणमि । कि भामण्डलु किं चन्दरासि ॥४॥ जं एव पपुच्छिउ राहवेण । विष्णविड णवंपिणु जम्वघेण ॥५॥ 'पसणे सुरेणु विष्णए वि कुम्नु । पन्नों मम्र्स भइसमुदु ।।६।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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