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[ ७०. सतरिम संधि ]
जीवियऍ कुमारे
तूरह सद्दु सुवि
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|| दुबई । चन्द्र-विहङ्गमे समुडावियर ( गय- ) अधार-महुयरे । तारा कुसुम- गियरें परियलिए मोडिए स्यणि-तरुवरे ॥१॥
परिभ्रमन्तं पञ्चस महगाएँ । ताय परजिय- सुर सङ्घायहीँ । 'अह अह देव देव जग केसरि । ताऍ जणु पज्जीनिय तं णिचि कल-कोइल-वाणी । 'अज्ज वि बुद्धि थाइ अयाणों
।
एमवि अमरोहाषणु ।
किए पाणिग्गण मयावणु ।
सूलेण य मिष्णु दसाण ||
तरुण - दिवायर-मेंटु-वलगाएँ ||२|| केणषि कहि दसाणण रायहीं ॥ ३ ॥ आइय का वि विसल्ला- तुन्दरि ॥४॥ णं विव- धारहिं सिहि संदीषि ॥५॥ चिन्ताविय सन्दोयरि राणी ॥ ६ ॥ केवलि-मासिउ दुक्कु पमाणों' || पुणु सभाचें पभणिद रावणु ॥ ८॥
"जे सुभा वि जीवन्ति खणं खर्गे । दुज्जय हरि बल होन्ति रणङ्गर्णे ॥९॥
देहि दसाण सीय सोमवाहण-सु
घत्ता
अज बि लङ्कावरि ि
मं रामदवग्गिएँ उज्झउ ॥ १० ॥
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|| दुवई || इन्दइ माणुकष्णु घणवाहणु धन्वाविस अकजॉन । सण- विणण किं किन एवहिं राय रणं ॥ १ ॥
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