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पउमचरित
[१२] सम्मइ स्यणायरें रयण-वाणि। लम्भह कोइलु-कुले मरम्बाणि ॥ लहमह चन्दणु गिरि मस्य-सिकें। लामा सुहवतणु जुबइ-अझै ॥२॥ सम्म धणु धणऐ. घरा-पवण्णु। लमइ कवाय-पावऍ सुवण्णु ॥१॥ कमाइ पेसण सामिय-पसाङ । लमह कि विणएँ जणाणुराड ॥७॥ लम्सह सजणे गुण-दाप्य-कित्ति। सिप भसिंचरें पुरु-कुले परम तिति ।।५।। सदमह बसियरणे कलस-रयणु। महकन्ध सुहासिब सुकइन्वयणु ॥६॥ लभा उपयार-महऐं सु-मित्तु। महि विलासिणि-बार-वितु || लटमइ पर-तोर महन्धु भण्हु । वर-वेलु-मूल वेडुज-खण्डु ।।८।।
घसा
गएँ मात्तिउ सिकल दी मणि बहरागरहों यज पडरू । आयइ सम्बई मन्ति जएँ णघर ण एक मइ माइ-वरु' ॥॥
[३]
रोवनी दसरह-गन्दणेण । धाहाचिउ सन्चे परियणेण ||॥ दुखाउरु रोबइ सयलु लोड। णं च चि चप्पे वि भरिट सोड ॥२॥ रोवह मिश्चय समुरइत्थु । कमल-सपढ़ हिम-पवण-उत्थु ॥६॥ रोबइ अन्तेउरु सोय-पुण्णु। णं छिन्नमाणु सङ्क-उलु बुपणु ।।३॥ रोवाइ अवराव राम-जणणि। केम दाइय-तरु-मूल-खाणि ।।५।। रोवा सुष्पह विच्छाथ जाय। रोवइ सुमित्त सोमिसि-माय ॥६॥ "हा पुस पुत केहि गओऽसि । किह सत्तिएँ पक-स्थल हओऽसि ॥॥ हा पुत्त मरन्तु ण जाइओऽसि । दहषेण केण विच्छोझोऽसि ||