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________________ २१२ पवमचरिड धणुहर इव गुण-मेल्लिय-सराई। पुणु णस्वर मंदिर गय तुरन्स । सग्गाषयार जम्मामिल। तित्ययर-परम-देवा, जाई। महरत्ता इस पहराउराई १५|| मुणि-सुरुवय-जिण-मजला गन्त ॥६॥ मिक्खवणे गाणे पिंडदाणच्छएँ ।।५।। पञ्च वि कहाणइँ होन्ति ताई १८॥ पत्ता 'महि मन्दर सायर जाव बहु जाव दिसठ महणाइ-जल है । राज होन्तु ताय मिण केराई पुण्ण-पबित्तहँ मङ्गलहँ' ।।५।। ते मङ्गल-स पहु विउद्ध। पंछण-मवलम्हणु मर-अक्षु ।।१।। णं उभय-महीहर तरुण-मितु। मानस-सरु रवि-किरणछित्तु ॥२॥ णं वाह-छोलु केसरि-किसोरु । णे सुरवा सुर-बहु-चित्त-चोरु ॥३॥ अश्ते बहु-मणि-गण-चिया । लविषय विमाणई खचिया ।।। पंणहयल-कमलई विहसिया। समण-वयणाई व पहसिया ॥५॥ णिकारणे जाएँ पप्फुल्लिया.। सुकलतइँ गाई समलिया ॥६॥ गिट्टि विमाणे हि संहिं वीर। सम्वाहरणालतिय-सरीर ॥७॥ परिपुरिछय 'तुम्हें पय केथु । किं मायापुरिस पहुक एन्धु ॥८॥ घत्ता स-समय कि अवयवे हि अच्छकरिय । कितिषण वि हरि-हर-चढवयण बाएं से श्रवरिय' ॥५॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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