________________
२१०
पउमचरिउ
[ ७ ]
पुणु उज्जयण गिविसेण पत ॥१॥ । रामोवरि वच्छल लक्षणों ॥२॥ अमुणिय-कर- सिर-तणु षम्मही ० ॥३॥ पुणु पारियन्तु मालवड दुइ ॥४॥
सागम्य दूरन्तरेण दत्त । जहि जणवड स-धणु महा-घणोच्च गुणवन्तउ घणुहर-सङ्गो ग्व सविस्मय उणि मुक्क । जो घण्णा किड णरवई व्व । सं मे विजया पर पवष्ण जा कसिण भुअवि बिसही भस्थि घोषन्तर जळजिम्मळ वस्त्र ।
उच्छुहणु कुसुमसरु रवद्द् व्य ||५|| जा अल-जल-गवला कि - यण्ण ।।६।। कलह व घदरे घरि ॥७॥ ससि सङ्ग समप्पह दिट्ट गङ्ग || ||
घत्ता
अब विहिं गरुड कवशु जपें हिमवन्तणं अवहरे विशिष
थोरै तिहि मि भजा दिन | जहिं मिहुई आरम्मिय- स्याहूँ । पाहुन इव अवरुह्मण-मणाएँ । अविचल रजा इव सु-करणाएँ ।
जुषि भाएं मरण । धम-वाय रणायण ||९||
[]
पुणु सिद्धिरिहिं सिद्धि व पट्ट ॥१॥ पन्धिम इव उच्चाइय-पयाइँ ॥२॥ गिरिवरयन्ता इव सब्बजाएँ ३३ ॥ रिसिवल इव साव-परायणाएँ ॥