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________________ १८४ परमपस्टि [१५] दाहिण-दिस परिट्रिड दुन्छ । वारे पहिल्ला णील धणु बरु ॥ वीयः णलु वर-लउद्धि-मयकरु । कुलिय-विहन्था पपाइ पुरन्दरू ॥२॥ स बार पिहीसं याड ! सूख-पाणि परिमय-सकर ॥३॥ चजथएँ वारें कुमुड़ जमु जेहड। सोणा-झुमालावालिय-हउ' | पञ्च में बारें सुसेणु समन्थर। विष्फुरियाहरु कोन्त-विहाथउ ॥५|| मह गिरि-किष्किन्ध-पुरेसा । भीमण-भिषिदमाफ-पहरण-कर ॥६॥ ससमें भामण्डलु असि लिम्स। गावइ पलय-दवग्गि पलिसउ ॥७॥ एम कियाँ रणे दुप्पइसार। पूरहों अट्ठावीस इ पारई ।। ८॥ पत्ता सहि लेह काले पडीवा रुवइ स-दुक्खउ दासहि । पवरहिं सई भुव-दण्डै हिं पुणु पुणु अप्फालन्तु महि ॥९॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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