________________
१८३
पजमचरित
[१३] पइजास्तें रामें कुछ-दी। विरल वळप सुग्गीवें माया-बलु वि विविड सक्षय | थिउ परिसक्ष करेविणु लक्षणे ॥३॥ इपनाय-रह-राहक्क-भयङ्कर। जमकरण सुठु भाइ-पुखरु ॥३॥ उपपरि पवर-विमाणेहि उपणउ । अम्भन्तर मणि-स्यण-वष्णउ ॥७॥ सत्त पवर-पापाराहि टिउ। णं अहिणव-समसरणु परिटिङ ॥५॥ सट्रि सहास मत-मायङ्गहुँ । गषधर गयवर पवर-रहमहुँ ॥६॥ रहपरै रहवरें तुङ्ग-तुरनहुँ। तुर उरएँ णरवर? अमाहुँ ॥४॥ विरइड एम यूहु णिच्छिार। णं सुकइन्द-कप्यु घण-सहन ॥८॥
धत्ता भयगारउ दुप्पइसारव दुणिरिक्खु सम्वहाँ जणही। णं हिरवड सीयहँ केरउ अचल अभेड दसाणणहाँ ॥५॥
[१४] पुग्व-दिसाएँ विजउ जस-सुबउ । पहिलऍ बार स-बहु सरदवड ॥१॥ वीयएँ मारह सइयएँ दुग्मुहु। कुन्दु बउस्थ पक्ष में दहिमुहु ॥२॥ छट्टएँ मन्दहरथु सत्समें गठ। उत्तर-वारे पहिल्लएँ भङ्गर ॥३॥ धीबाएँ सादु तहमएँ गन्दणु। पर) (१) कुमुल पा रहवतणु॥३॥ अट्ठएँ बन्दसेणु कुरियाणणु । सतमें चन्दरासि दणु-दारणु ॥५॥ पच्छिम-बार पहिल्लएँ ससिमुह। वीयएँ सुहद्ध परिट्विट दिढरहु ॥६॥ वाइमएँ गवउ गवक्षु घउरथएँ। पलमें तारु विराहिउ' छट्टएँ ।।७।
घन्ता जो सम्ब? बुखिए पार जासु मयका रिछु धएँ । सो जम्बत्र सरुवर-पहरणु वारें परिट्रिड सत्समएँ ॥८॥