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________________ पढमचरित धीरिख रावण-उपवण-महणु। सुहटु पहक्षण-अक्षण-पादणु ।।३।। धोरिउ गल गीलु वि मामण्डलु । दिदरहु कुमु कन्दु ससिमण्डल ।।४।। घोरिउ स्यणकति रहबद्धष्णु । अगाउ अङ्गु तर विहीसणु ||५|| धीरिज चन्दसि मामण्डलु। हंसु वसन्तु सेउ वेलन्धरु ।।६।। धीरिज दहिमहु कलुण-रसाहिउ । गवउ गवस्तु सुसेणु त्रिराहिउ' ।।७।। धीरिउ तरलु तारु तारामुहु । कुन्दु महिन्दु इन्दु इन्दाउछु । धत्ता अपणु वि जो कोइ रुवन्तउ सो साहार वि सक्कियर । पर एक्कु दसासही उम्परि रोसुण धीरै वि सक्किपट ॥२॥ [३२] विरहाणल-जालोलि-पलिस। अण्णु वि कोच पहाण-चित्त ।। किय पइज रणे राहवचन्दें। 'रिट रवि जाइ अइ वि सुरिन् ।।२। जद्द वि जणशेण महि-माणे । जइ वि तिलायणेण वम्हाणे ॥३॥ जह वि अमाग कियन्त धणणं खन्ने जहवि तियक्षहाँ तणएं ॥४॥ अइ वि पहाणेण जइ वरुणे। जइ वि मियङ्के अक्कै अरुणें ||५|| पइसाइजइ वि सरणु कलि-कालही। हिक्का पहें जलें थलें पायाल हाँ।।६।। पइसइ जइ चि विनरें गिरि-कन्दरें । सप्ष-कियन्तमित्त-दन्तन्तरें ॥७॥ पेसमि सतु तो इ सई हत्थें । तहाँ मायासुग्गीवहीं पन्थें ॥४॥ घत्ता कल' कुमार अस्थन्त गिरिसु वि रावणु निअह जह । तो अच्पड बहमि वलम्तएँ हुवध किष्किन्धादिवइ' ॥९॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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