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पाट
'हा हा कुम्मयषण एक्कोअर। हा हा मय मारिख महोयर || हा इम्बइ हा सोयदपाहण। हा जमहण्ट भणिट्टिय-सारण || हा केसरिणियम्ब दणु-दारण। जम्युमालि हा तुम हा सारण' 11६।। दुक्नु दुक्षु पुशु मण्ड णिवारिउ । सोय-समुदही अप्पड तारित ॥७॥ 'तिक्ष-गहहाँ साल-पहिहीं। किर केत्तिय सहाय वणे सीहहाँ ॥४॥
पत्ता अच्छउ अबछड जो अच्छा तो वि ण अप्पमि जणय-सुअ । किह घुलमि हउँ एकाही जासु सहेजा वीस भुभ ॥९॥
[१०] जो सहि सारु कहद्धय साहणे। सो मई सत्तिएँ मिण्णु रणझणें ।।३।। एवर्हि एक्छु पहेवउ राहउ । कल्लएँ तहाँ चि महु चि पवराहद ॥२॥ काल्लएँ सहाँ वि मा वि जाणिजह । एमड-पारायहि मिज्जा ।।३।। कलाएँ तहाँ वि महु वि एकन्तरु । जिम्ब तहों जिम्ब महु मम्मु महाफरु।।।। कालाएँ धद्धावणउ तहबाहैं। जिम्ब उज्या-णपरिहें जिम्ब लाहे ॥५॥ कल्लएँ जिम्ब मन्दोभरि रोषह। बिम्व जाणइ अप्पाणउ सोवा ।।६।। कल्लएँ गवत गहिय-पसाहशु। जिम्ब महु जिम्ब नहों केरल साहशु॥७॥ काल हुमबह-धगधगमाणहों। जिम्ब सो जिम्व हउँ हुकु मसाणहाँ ॥८॥
घसा जिम मई जिग्य तेपा णिहालिड खर-दूसण-सम्युल-पहु । जिम मई जिम्व तेमाकिजिन्य काएँ रण जथालचिन बहु ।।५।।
तो एस्धन्तर राहव-वीरें। धीरिउ फिकिन्धाहिक-पाणउ।
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धोरिउ अप्पर चरम-सरीरें || धोरिट जम्बवन्तु वहु-जाणउ ।२