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________________ पउमचारिज हा लक्षण पेसणही मिउसी। कहाँ हिय जय-सिरि कुरु-सि ॥६॥ हा लक्षण पई विण महि सुण्णी । धाइ मुधि सरासइ रुपणी ॥७॥ हा लक्षण कल पवराहक्षु । कहाँ एकल्लड मेलिउ राहड ॥४॥ पत्ता णिय-बन्धष-सयण-विहणिय दुह-मायण परिचत्त-सिथ । मई नही दुरुषहँ भायण तिहुअणे मा वि म होज तिय' ॥५॥ [ ] सहि अवस्ने सुर-मिग-समतावणु। णिय-सामन्त गयेसह रावणुः ।।५।। को मुड को जीवाद को पडियउ। को सङ्गामें कासु अनिमडिया | को माया दन्त-विणिमिपण। को करवाल-पहर-परिचिण्णउ ॥३॥ को नाराय-घाय-जजरियउ। को कपिणाय-खुरुप्प-कपपरियड ।। कैग बि तु 'महारा रावण। पवण-कुवर-वरुण-जूराषण ।।५।। भत्र वि कुम्मयप पाउ भाषह। तीयवाहणु सो वि चिरावई ।।६।। वत सुब्बाइ इन्दइ-रायहाँ। सीहणियवहाँ उ महकायहाँ ।।७।। जम्बुमालि जमघण्टु ण दोसह। एकुवि जाहिं सेणे किं सीसह ।।६ घत्ता का जेहि-जेहिं वग्गन्तटते ते विण्विाइप समरें। थिङ एव हि सूठिय-वक्रषठ जं जागहि देव करें' ॥१॥ तं णिसुणेवि दसाणणु हलिउ। गंवच्छ-स्य सूलें सलिल ॥१॥ थिब हेटामा राषण-राण । हिम-हउ सयप विहागड ।।२।। वह स-मुक्खट गग्गर-षयण । पाह-मरन्त-निरन्तर-गवणE RIL
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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