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पउमचरित
हा स्पर-दूसग-चमु-मुसुमूरण। हा हा कोडिसिला-सञ्चालण।
हा सुग्गीव-मणोहर-पूरण ।।१।। हा मयरहरावत्तफालण ॥१२॥
घता
काह तुहुँ कहि हउँ कहिं पिययम का जोरि न जा गर। हय-चिहि विछोड करेप्पिणु कवण मोरह पुषण तड' ।
हरि-गुण सम्मरन्तु विदाणत। स्वइ स-दुस्वउ राहवराम || 'परि पहरित पर-परवर चक्कएँ। वरि खय-काल दुक्क भत्थकएँ ॥१॥ वरि सं कालकूड विसु मक्खिा । परि जम-सासणु णयणकडविखट ॥३॥ परि असि-पञ्जरें थिउ थोवन्तरू । बरि सेविड कयन्त-दम्वन्तरु | अम्प दिण्ण परि जलणे जलन्सएँ । बरि वगलामुंह ममिज ममम्सएँ॥५॥ चरि वामणि सिरण पविच्छिय । परि दुकन्ति भविति समिच्छिय ।। चार विहिउ जम-महिस-रहिट । मीसण-कालदिटि-श्राहि-हिउ ।।७।। परि विसहिउ केसरि-गह-पारु । वरि जोहड कलि-काल सपिच्छर ।।८॥
वरि दन्सि-दन्त-मुसकणे हि विणिमिन्दाधिउ अप्पगउ । वरि पस्य-दुक्नु भाथामिस गड विभोउ माहें तणज' ॥१॥
[५] पकन्दर्ने राइवपन्दें। मुक धाइ सुगीव-गरिन्दे ।। मुक धाह मामण्डल-राएं। मुक धाह एवणअथ-जापं ॥शा मुक चाह वन्दोवर-पुर्ने । अण्णु विहीसणेण मुक्तते ॥ मुक धाह अजय-बोरे हिं। तार-सुसेप्यहि रणउ] धीर हिंसा मुक धाह गय-गवय-गवाल हिं। पम्दण-दुरियषिग्व-वेकवलं हि ॥4॥