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[६७. सत्सट्टिमो संघि] लक्रवण सस्तिए विणिमिण्णएँ हक्क पट्ट दहश्यणे । निय-खेपणही मुहर णियन्त उ सभइ स-दुक्खर रामु रणे ।।
[.] मिष्णु कुमार दसाणण-ससिएँ। पर-गन्धु व गमयसण-सत्तिएँ ।।१।। कुमाघ सुका कच-सम्पत्तिएँ। कुपुरिस-कण्णो इव पर-तसिएँ ।।२।। सुश्रणो इव खल-धरण-पउसिएँ। पर-समड ब्व जिणागम जुत्तिा ।।३।। जिग-मग्गो इव फेवल-भुत्तिएँ। विसयासत्तु मुणि म्ब ति-गुनि ॥॥ सो इव सम्चाएँ वित्तिएँ। शुन्दो इष मणहर-गायत्तिएँ ।।५।। सेल व वजासणिर पन्ति। विझो इष रेवाएँ पहन्ति ।।३।। मेहो इस विजल' कषन्तिएँ। जलणिहि व गाएँ मिलन्ति ॥७॥ ताम समस्-दसणु मलहन्तिएँ। गाइँ दिवस भोसारित रस्सिएँ ॥८॥
पत्ता दहमुह-सिस्छेउ ण दिन रहुवा-णन्दणे विजड पा वि । सोमित्ति-सोय-समतत्तर णं अस्थपणही तुफ रधि ||९||
[२] दिणधर गह-कुसुमें न्च गलीणएँ । दिणे णिसि-बहरिएँ व बोलीणएँ ॥३॥ सम्मा रामसि(?)व अलोण। तमें मसि-सनए इन विक्षिण्णएँ ॥२॥ कव(?)सयणे व सोाउण्णएँ। म अचलें मिदुणे ब परुण्ण ।।३।। गएँ रावणे रण-नहसुकिमपणएँ। किग-कालय जय-तर-पदिग्णएँ ।।५।।