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________________ १५६ पउमचरित 'अरे साल दुवियन कुल-फसग । म लवाहिउ मुधि विहीसण ॥ २॥ बाल सामिसाल ओलग्गिउ। महि-गोमरु घराउ एकलिउ ।।३।। उधुव-पुच्छ-दण्डु गह-दीहरु। केसरि मुवि पसविड मिगवरु Dan सन्चगिल वामियर-पसाहणु। मेरु मुएवि पसंसिउ पाहणु ॥५॥ तेय-रासि णहसिरि-भालिकणु। भाणु मुवि धरित मोहाणु ॥५ जलयर-अलकल्लोल-मयका । जलहि मुपवि पसंसिड सरवर ॥७॥ गरट धरै वि सिव-सासन पनि । जिणु परिहरें विस-देवउ अघिउu मासु ण केण विणावई पाउँ। सौ पई गहिउ विहीसण राई ॥३॥ पत्ता वरहि मिलें वि सिंह माहपर्ण जिह उगमामिज लम्भु महु । परिसर साइज देहि सहु॥१०॥ [-] तं शिसुणे वि सोपीर-वीर(१) सन्तावणेणं । णिन्भच्छिउ दसाणणो कुइप-मणेण विहीसणेणं ॥१॥ 'सच में भासि तुहुँ देव-देव। एहि बहुभारर कु-मुणि जे ॥१॥ सबउ जि भासि तुहुँ पर-महन्दु । पहिं पुण्णाणणु हरिण-विन्दु ॥१॥ सब में आसि तुहुँ मेरु घण्टु । एहि जिग्नुशु पाहाय-खण्ड ॥४॥ सब जि आसि रवि तेयवासु । एवहिं जोहणु जिगिजिगन्तु ॥५॥ सवउ जि आसि जलगिदि पहाणु । एवर्हि वहि गोप्पय-रमाणु ॥६॥ समर जि आसि सरु सावितु । एहि पुणु सोय-तुसार-विन्दु ।।.।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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