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________________ १५४ पडमचरित [५] वले मम्मीस अघि रहु वाहिउ ताव दसाणणेणं । महिणव-लच्छि-बङ्गुष-पिण्डस्थण-परिचयण मणेणं १०॥ वरूपराह सोह) व पुस । मिन्ह ण मिझ जाम्ब पल-पील-परवाहं ॥२॥ साम्ब विहीसणेण रहु दिण्णु अम्तराले । गलगजन्त हुक मेह व परिसयाले ॥३॥ मीसण विसहर बसन्तुल-वग्ध-खण्दा । भोरालन्त मत्त इथि च्च गिल गपडा |१|| वर-पगूल-दीह सोह व णिवद्ध-रोसा । अयछ महोहर व जलहि व गरुअ-/सा ॥५॥ वेरिण वि पवर-सन्दणा वे वि चाव-हत्या । वेषिण वि रक्षस-शुमा समर-भर-समध्धा ॥६॥ धेषिण वि महिहर व प कयावि चल-सहावा । वेमिण वि सुबु-वंस वेणि वि महाणु माया ॥७॥ वेषिण वि धीर वीर विज्ज व देय-चवला । येषिण वि पाक-कमाल-सोमाल-चल-अचला ll बेणि विवियह-वच्छ घिर-थोर-वाहु-दण्डा । वेषिण दि बस्त-जीवियासाहवे पचण्या ॥२॥ पत्ता सहि एक्कु पर एत्तिउ दोसु दसाणणहों। खणु विण फिदाइ णिय-मणहाँ ॥१०॥ [६] अमरिस-कृद्धएण समर-वरजण-जूरावणेणं । णिमपिछड पिहोसणो पठम-मिडन्त राषणेणं ॥१॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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