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________________ पउमचरित के घिणिया-विमागहाँ सम्म देन्ति । गहें णियवि वहरिहि सिरई लेन्ति । सहि नेहएं रणे सोणिय-जलेण। रड णासिउ मजणु जिह खोण ॥५॥ पत्ता रावण वलेण किउ विवरामुहु राम-बलु । पपिलियउ ण दुपाएं उवहि-जलु ॥१॥ [४] णिम्पियर-पवर-पहर-परिपेल्लिएँ चलें मम्मीस दवि । हैरव-पहस्थ-सत्तु सेणावइ थिय णल-गील वे वि २१॥ समालग्ग सेण्णे । धय-छत्त-वपणे ॥२॥ जयासावरले । बिमाहिं चूते ॥३॥ चलवामरोहे। पदमन्त-जोहे ॥४॥ कमुगिपण-सी। बहुपील-दीहे ॥५॥ महाहन्थि-सपडे । समुदण्ड-सुण्डे | मुरमोह-सोहे। घणे सम्दमोहे ।। तहिं तुफमाणे । चले अप्पमाणे ॥॥ कइन्दवरहि। मिडन्तेहिं तेहिं ॥९॥ दसासल्स सेग्न मयं वाण छषणे ||१०|| ण सी छत्त-दण्डो। अछिपणो अरवण्डो ।।१।। पण तं सत्-चिन्धं । ण जग्ण विद्धं ॥१२॥ ण सो मस-इत्थी। वो जस्म पस्थी ॥१३॥ ण तं हथि-गत्तं । खयं जपण पत्तं ॥ घत्ता सो पस्थि मड सो रहण वि जो हुकाइ सवसम्मुन्न । जो र ण किउ परम्मुहउ ॥१५॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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