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________________ १५० पडमचरित गं पाय-पहारहों ओसरपि। धाइउ णिय-परिहउ सम्म यि || II णं बुजणु सीस-वलगु किन गं उत्तमु सम्बहुँ उभरि थिउ ॥३॥ सो ण वि रहु जेल्धु ण पइसरिज । सो गा वि गड जो ण वि धूसरिउ ॥१॥ सोण वि हड जो ण वि महलियउ । सो ण विधउ जो ण वि कवलियउ।५ जउ रमइ दिद्धि तउ स्य-णियरु। उ णावइ मणुसुण स्यपियरु ॥६॥ तसा वि के वि धावन्ति भड़। जेसह गलगनई हस्थि-हाच ॥७॥ जेत्तहँ सन्दण दणु-मीमिय। सुन्वरित नुरङ्गम-हिसियई ॥४॥ जेत घहर गुण-गहिय-सर। जेन्तो हुकार मुअन्ति जर ॥९॥ धत्ता तेहा समरे सराह मि भजन्ति मइ । गर-गरिव हि साम समुट्टिय रुहिर गइ ।। ६ ०|| [३] गयबर गण्ड-सेल-सिहरग-विणिगय णइ नुरन्ति । उद्धव-धवल छत्त हिण्डीरुप्पील-समुन्वहन्ति ॥ १॥ पवरोज्झर-सोणिय-जल-पवाह । करि-मयर-तुरङ्गम-ण-गाह ॥२॥ चकोहर-सन्दग मुसुमार । करवाल-मछ-परिहन्छ-धार ॥३॥ मतभ-कुम्भ-मीसण-सिलोह। सिय-चमा-चलाया-पन्ति-सोह ॥४॥ संग तरेवि के वि वावरन्ति । वुद्धम्ति के वि के वि उम्वरन्ति ॥५॥ के वि रय-धूसर के विहिर-लित्त । के वि हस्थि-सदएँ विहुणेवि वित्त ।।६।। के वि लग्ग पडीवा दन्त-मुसलें। गंधुप्त विलासिणि-सिहिण-जुअलें।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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