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पहमचरित
ससुबन्तु वि दोहर-सराई ! कोमल दस-इन्दीवरेहि ॥५॥ हणुवेण वि मेल्लिा अयम्दु । भइ-दीहरू गाई समास-दण्ड ।।६।। उमोतिय तेण समय सीह। मोम-कुम्म-मुसाइकोह ॥७॥ अगहन्त पहिण्डिय वलु कासे । ओहाय-हय-य-परवरेसु ॥८॥
पत्ता उन्धुप-हरुल-पईहहिं व खजन्तड सोहें हिं। णासह मय-वेविर-गत अवरोप्पर लोहन्सार ।।९।।
[1] बल्ल सपलु वि किन भय-विहलु जाम्म हणुवस्तु दसाणे मिडिउ ताम ॥१॥ पश्चापाण-सन्दा पमय-चिन्धु । बिउ उ घि रण-मर-धु सन्धु ।।२।। सो जुमममाणु जं दिहु तेग। मण्णाहु सइउ लाकाहिवेण ।।३।। रण-रहसुच्छलियहाँ उरें ॥ माइ। सुहि-सममें गहम-सणेहु णाई ॥१॥ पुणु दुक्खु दुक्षु आइधु अङ्ग। सीसा करपिगु उत्तमझें ।।५।।
आयामिउ घणुहरु लइड वाणु। पारा समरु हणुवं समाणु ॥६॥ तहि तेहएँ काले धणुवरेण । रहु अम्सरे दिण्णु महोभरेण ।।७।। हकारित मारु 'माहि पाकि। सवसम्मुहु रहवर वाहि पाहि' ||८||
पत्ता मं सुणे वि महोअरु जेसहँ रहवा वाहिर तत्तौ । उत्थरिय थे वि समरकणे णं पय-मंह णनणे ॥॥
[१५] हणुवन्त महोअर मिरिउ जाम । सो जम्बुमालि सम्पस ताम्ब ॥१॥ सओपि रहवरे सयफ सीड। अण्ड पार सगुकदोह ।।२।।