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पडमचरित
[10] सं णिसुपि मालि misits | सर-जास आ RS 10 णं सुअणु भणे हि बुआणेहि। पाउसे दिणयह शव-घणेहिं ॥२॥ हणुवेण पि सर भट्ट-रग मुक। पसरम्त हणन्त दियन्त लुक ।।३।। आयासे मन्ति ण धरणि-धी। ग धयर्गे ण रहबर हय-पगी | अग्गले पछा भ-परिप्पमाण। जब जज विहिता सजिवाण औसरिउ मालि णिधिसन्तरंण। बहु दिण्णु ताम्प बोअरेण ॥६॥ हकारिउ अहिमहु पवण-जाउ। 'कहि जाहि पाव ख्य-कालभाउ ॥७॥ पडंग जि नुज मर जाउ। जे भन्न भिन्नै मालि-राउ ॥१॥
यत्ता हउँ वजोयरु भव-माणु नहुँ पवणजप-णन्दणु । अम्मित के वि भय-मासुर रणु पंक्वन्तु सुरासुर' ॥९॥
[1} ते विगिगा वि गलगमन्त एम्ब। मुखममत-गइन्द अम्ब ।।३।। अभिष्ट महाहवें अतुल-मल्छ । परिवारप-पक्रय-णिकान्त-सन्छ ।।२।। अहिमाण-अणु-भई सुन्द-वंस। साम-सरहिं लड्-प्पसंस ॥३॥ तो जर समारण-गान्दणेण। पर-सूर-समप्पाह-सन्दणेग । विहि सर हि सरासणु छिपणु सासु । गं हियन छुधिउ वबोयरासु ॥५॥ किर अवरु चार करें घडा बाम । सब-सपर-खण्ड रह कियाड ताम्ब ।।६।।