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________________ ११८ हि तेह का समावडिय । र परिसइन्ति ममन्ति किए । पसर मढ विजय सयम्भु वे वि मिट्टिय ॥10॥ चल चल मिन्जुल -पुल सिंह ॥ ८ ॥ घत्ता आयामै वि रावण- मिण जट्टियाएँ विजउ विणिभिण्णउँ वल कि जं सां हउ । 'कहिँ गच्छहि अच्छमि नाम ह सोहु जम घाइड कलेण । तं. वय सुर्णे वि किर ऑच । यि कुल-ह-आइरण । पनि गाएँ उसु छिण्णउ ॥९॥ [ । खवियारि-वीर-सोह सं जें ॥१॥ ] खम्॥२॥ वर्णे विजय सम्भु चि हिउ जं अमिट्ट परोप्यरु युल इअङ्ग । णं रावणिन्द्र विष्फुरिय-तुण्ड । एथन्तरं सुरवरहु मि असकु । रायण तं जन्तु जाइ । स्वविचारि णिचों वच्छय लग्गु तेण वि पविवसों चक्षु मुक्कु । लिए खुडिउ मराठें जेम कमस्तु । णं न्हन्थि ब्रद्दण्ड-सुण्ड ॥३॥ सोई मंत्रि ॥४॥ अस्थइनि दिनयर विषु णाइँ ||५|| जिह णलिणि-पत्तु सिह सहि जि मग्गु ॥ ६ ॥ सोहहीं णं जमकर बुक्कु ॥७॥ णं इन्दिन्दिक रुण्टन्त-मुहलु ||८|| । सिरु गयउ कबन्धु जै भण्दर निय सामिह पेणु सरह । घत्ता सुह मद-दोड़ छण्ड | विउण णं भडु पर ||९|| [ ५ ] धाविज विवादितं रणें अजड ॥१॥ । रहु बाहे पाहें स्वयम्मुह || २ || सिद्द पहरू पहरू यि सुव-बळेण ॥३॥ विहि राजावत भम्मिद ॥४॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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