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________________ १०२ पउमपरित मारिश्चहीं भय-मांसावणेण । धणु छिण्णु णषर सन्तावणेण ॥८॥ तेण विहाँ चिर-पेसिय-सरेहि। संसाम व परम-जियोसरहिं ॥९॥ विहि मि रण सप्पुरिसे हि पत्ता णिय-णिय-शव चत्ताइ । णं मिरगुणहूँ कलत्ताई ॥१०॥ [५] घप्तेंवि धणुषराई लही गयासणीओ। पाई कयन्त-दाखओ जग-विशापीओ ॥ ५॥ णं पिसुण-मइउ दप्पुमदाउ। प असइउ पर-पर-सम्पबाउ ॥२॥ णं कुगइट मय-मीसावणाउ । णं दुम्महिलड कलहण-मणा ॥३॥ णं दिदित काल समिछराहूँ। कुहिणित दूर्मवरकरार ॥४॥ गं दित्तिन पलय-दिवायराहँ। णं वीचिउ खय-स्यणापराह ॥५॥ तिह लडडिउ भिडि-भयङ्कराहँ । दासरहि-दसाणण-किकराहँ ॥६॥ दिम्ति करें हिं स्यणुजलाउ । णं मेह-गियम् हि विजुलाउ ।।७।। मुन्तिर सट्टन्सि केम्व। गह-घडणे गह-पम्ती जेम्व ॥८॥ गहें अमर-विमाणई लकियाई। मय-घाय-इवग्गि-तिविछियाई ॥१॥ पत्ता मारिचण सरहुँ स-सारहि स-घउ हउ । सरैवि हड्डह पोट्टल गवर कउ ।।१०।। पालि राम-किस राबण-किकरण । सीहणियम्बु कोकिओ पहिय-गस्वरेणं ॥१॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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