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________________ 4 जहिं जहि रयनिहिं गलगजिउ जेहिं जहिं लङ्काहि इच्छिद । ताहँ तहँ पष्फुल्लित्रय । कासु वि कुण्डल-जुअलु णिउसउ । कहीं षि कदर कण्ठ कविसुत || ४ || कहाँ विम कासू विदाइ ॥५॥ कहाँ त्रि गइन्दु तुरङ्गभु कासु वि । श्रोडर कहीं वि दिणार-सहासु वि || कहाँ षि मारुतुल कहीं विषण्ण क्षणहरुख को डि पुणु अण्णाहीं ॥ ७ ॥ कहाँ घि फुलु तम्बोलु स ह । कहाँ विपसाणु सहुँ चर-वस्यें ॥८॥ जे पविय पसाय गावि सिर-कमलाहूँ रवि उ स पउमचरिउ [v] जेहिं जेहिं पिय-कज्जु विषमि ॥1॥ जेहिं जेहिं रण- भारु पछि||२|| पेसियनिय साम दवणें ॥ १ ॥ धत्ता तं पडु पह-सङ्घ- भेरी-रवेण कोलाहल -काल-पील घुम्मु-करड-टिविळा-धरेण परिक हुडुका वजिरेण वहिंपच हि । इस मुददे ॥९॥ [ ६३. तिसट्टिमो संधि ] अद्द्शिच-गहिय-पसाहणहूँ । राम-दसाणण-साइणहुँ ॥ [] सो मरि रामो समय साहणेणं । रह-गय-तुर-जोड़ - पञ्चमुह-वाहणं ॥३॥ कंसाख-ताल-द -डि- उरवेण ॥२॥ पञ्चविंग मउन्दा भीसणेण ॥३॥ रि-रु-दमरु करेण ॥ ४ ॥ वुग्मन्त-म-गय-जिरे ॥५॥ 1 I I
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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