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जहिं जहि रयनिहिं गलगजिउ जेहिं जहिं लङ्काहि इच्छिद । ताहँ तहँ पष्फुल्लित्रय ।
कासु वि कुण्डल-जुअलु णिउसउ । कहीं षि कदर कण्ठ कविसुत || ४ || कहाँ विम कासू विदाइ ॥५॥ कहाँ त्रि गइन्दु तुरङ्गभु कासु वि । श्रोडर कहीं वि दिणार-सहासु वि || कहाँ षि मारुतुल कहीं विषण्ण क्षणहरुख को डि पुणु अण्णाहीं ॥ ७ ॥ कहाँ घि फुलु तम्बोलु स ह । कहाँ विपसाणु सहुँ चर-वस्यें ॥८॥
जे पविय पसाय गावि सिर-कमलाहूँ
रवि उ
स
पउमचरिउ
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जेहिं जेहिं पिय-कज्जु विषमि ॥1॥ जेहिं जेहिं रण- भारु पछि||२|| पेसियनिय साम दवणें ॥ १ ॥
धत्ता
तं
पडु पह-सङ्घ- भेरी-रवेण कोलाहल -काल-पील घुम्मु-करड-टिविळा-धरेण परिक हुडुका वजिरेण
वहिंपच हि । इस मुददे ॥९॥
[ ६३. तिसट्टिमो संधि ]
अद्द्शिच-गहिय-पसाहणहूँ । राम-दसाणण-साइणहुँ ॥
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सो मरि रामो समय साहणेणं । रह-गय-तुर-जोड़ - पञ्चमुह-वाहणं ॥३॥ कंसाख-ताल-द -डि- उरवेण ॥२॥ पञ्चविंग मउन्दा भीसणेण ॥३॥ रि-रु-दमरु करेण ॥ ४ ॥
वुग्मन्त-म-गय-जिरे ॥५॥
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